आज यहां पर आप एक बहुत ही अहमियत भरी जानकारी यानी यह जानेंगे कि नमाज में कितनी सुन्नत है हमने यहां पर नमाज की सुन्नतें हिंदी जबान के बहुत ही साफ़ और आसान लफ़्ज़ों में बताया है।
जिसे पढ़ने के बाद आप बहुत ही आसानी से समझ जाएंगे कि नमाज में कितनी सुन्नत और कौन कौन सी है साथ ही सभी सुन्नतों को पुरा करना भी सिख जाएंगे इसी लिए आप ध्यान से पूरा पढ़ें और समझें।
Namaz Me Kitni Sunnat Hai
नमाज की सुन्नतें निम्नलिखित है:
- तहरीमा के लिए हांथ उठाना
- हाथों की उंगलियां अपने हाल पर रखना
- तकबीर के बाद फौरन हांथ बांध लेना
- पहले सना फिर अउजुबिल्लाह और बिस्मिल्लाह पढ़ना
- सूरह फातिहा के खत्म पर आहिस्ता आमिन कहना
- रूकुअ में घुटनों पर हांथ रखना और उंगलियां न फैलाना
- रूकुअ में तीन बार सुब्हान रब्बियल अज़ीम कहना
- रूकुअ में जाने के लिए अल्लाहु अकबर कहना
- रूकुअ में इस कदर झुकना कि हांथ घुटनों तक जाए
- रूकुअ से उठते वक्त समिअल्लाहु लिमन हमिदह कहना
- सज्दे और सज्दे से उठने के लिए अल्लाहु अकबर कहना
- सज्दे में हांथ जमीन पर रखना
- सज्दे में कम से कम तीन बार सुब्हान रब्बियल अला कहना
- सज्दे के लिए पहले दोनों घुटनों को साथ में जमीं पर रखना
- फिर दोनों हाथों को एक साथ जमीं पर रखना
- फिर नाक फिर पेशानी को जमीं पर लगाना
- दोनों सज्दों के दरमियान मिस्ले तशह्हुद के बैठना
- अगली रकात के लिए पंजों को घुटनों पर रख कर उठना
- दुसरी रकात से फारिग हो कर इस तरह से बैठना
- बायां पांव बिछा कर दाहिना खड़ा कर के बैठना
- औरतें दोनों पांव दाएं ओर निकाल के बाएं सुरीन पे बैठना
- दाहिना हांथ दायां और बायां हांथ बाईं रान पर रखना
- उंगलियों को अपने हाल पर छोड़ना
- उंगलियों को किनारे घुटनो के पास होना
- शहादत पर इशारा करना
- तशह्हुद के बाद कादाए अखिरा में दुरूद शरीफ पढ़ना
- दुरूद शरीफ के बाद अरबी दुआ पढ़ना जो मंकुल हो
- अस्सलामु अलैकुम पुरा कह कर सलाम फेरना
- जुहर के बाद कम दुआ करके खड़ा हो जाना
- इसी तरह ईशा और मगरिब में भी खड़ा हो जाना
- वरना सुन्नतों का सवाब कम हो जाएगा
आप ने अभी तक यह समझा यानी जाना कि नमाज की सुन्नतें कौन कौन है अब आइए जानते हैं कि इसे पुरा यानी हर सुन्नत को अदा कैसे करें आईए एक एक करके अच्छे से समझते हैं हम सभों के लिए यह जानना भी बहुत ज़रूरी है।
तहरीमा के लिए हांथ उठाना
यहां पर तकबीरे तहरीमा यानी नियत करके हांथ उठाने की बात कही जा रही है क्योंकी हमें नियत करने के बाद हांथ उठा कर अल्लाहू अकबर कह कर नियत बांधना होता है।
इसमें पुरुष हजरात कान की लौ छू कर इस सुन्नत को पुरा करते हैं जबकि औरत के लिए यह सुन्नत है कि वो अपना हांथ सिर्फ मोंढ़ों तक ही उठाएं।
हाथों की उंगलियां अपने हाल पर रखना
हाथों की उंगलियां को न ज्यादा फैलाएं और न ही सिकुड़ कर रखें यानी जब उपर हांथ करें या नीचे लाएं तो हांथ को ज्यादा न फैलाएं।
इसका ख्याल रखें अगर यह सुन्नत अदा नहीं होगी तो मुकम्मल सवाब हासिल नहीं होगी हर हाल में इसका ख्याल रखें और अमल में लाएं।
तकबीर के बाद फौरन हांथ बांध लेना
अब अपनी हाथों को बांध लें यहां पर उसी का जिक्र है जब आप नियत करने के बाद अपने हाथों को तरीके से बांधते हैं उपर में दाहिना हांथ रखें और नीचे बाएं को।
यहां पर औरत अपने सीने पे नियत बांधेंगे जबकि पुरुष हजरात को नाफ़ के निचे नियत बांधनी चाहिए इसमें दाहिने हांथ की तीन उंगली उपर होती है और छोटी से और अंगूठे से बाएं हांथ की कलाई पकड़ते हैं।
पहले सना फिर अउजुबिल्लाह और बिस्मिल्लाह पढ़ना
नियत बांधने के बाद सबसे पहले सना सुब्हान क अल्लहुम्मा व बिह्मदि क व तबारकसमू क व तआला जद्दू क व ला इलाहा गैरूक पढ़ें।
इसके बाद अउजुबिल्लाह मिनश शैतानिर्रजिम फिर बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहिम पढ़ें तब ही यह सुन्नत आपकी अदा यानी मुकम्मल होगी।
सूरह फातिहा के खत्म पर आहिस्ता आमिन कहना
जब हम सब नमाज अदा करते वक्त अल्हम्दु शरीफ यानी सूरह फातिहा पढ़ लेते हैं तो यहां पर हमें आहिस्ते से आमिन कहना होता है।
अगर हम आमिन न कह पाएं तो यह सुन्नत हमारी अदा नहीं होगी इसी लिए हमें यहां पर आहिस्ते से आमिन कह कर सुन्नत पुरा करना चाहिए।
रूकुअ में घुटनों पर हांथ रखना और उंगलियां न फैलाना
यह तरीका पुरुष के लिए अफजल है कि आजकल लोग रूकुअ में हांथ की उंगलियां मिला कर रखते हैं जबकि यह तरीका औरत के लिए है।
हर पुरूष हजरात को चाहिए कि जब हम रूकुअ में जाएं तो अपने हथेलियों को घुटने पर बिछाकर अपने उंगलियों को फैला लें नहीं तो सुन्नत अदा नहीं होगा।
रूकुअ में तीन बार सुब्हान रब्बियल अज़ीम कहना
यह सुन्नत इस तरह अदा करें यानी जब अल्लाहु अकबर कहते हुए रूकुअ में जाएं तो वहां पर कम से कम तीन बार सुब्हान रब्बियल अज़ीम जरूर पढ़ें।
वैसे तो पांच या सात बार भी कह सकते हैं लेकिन कम से कम तीन बार जरुर पढ़े तब ही यह सुन्नत आपकी अदा होगी यानी मुकम्मल होगी।
रूकुअ में जाने के लिए अल्लाहु अकबर कहना
जब रूकुअ के लिए झुकना शुरू करें तो अल्लाहू अकबर कहते हुए झुकें और झुकने के बाद ही तकबीर खत्म करें इसमें आप अल्लाह में लाम बढ़ा सकते हैं।
रूकुअ में इस कदर झुकना कि हांथ घुटनों तक जाए
अब रूकुअ में इतना ही झुकें जिससे आपकी हांथ घुटने पकड़ सके यहां पर पुरुष को पीठ बराबर करनी होती है और सजदे की जगह देखना होता है।
जबकि औरत के लिए यह है कि अपनी पीठ बराबर न करें और नाही सजदे की जगह देखें बल्कि आप अपने पैर की अंगूठों को देखें।
रूकुअ से उठते वक्त समिअल्लाहु लिमन हमिदह कहना
यहां पर अगर आप अकेले नमाज पढ़ रहे हैं तो उठते वक्त समिअल्लाहु लिमन हमिदह और रब्बना लकल हम्द कहें और जमात में हैं तो सिर्फ़ रब्बना लकल हम्द कहें।
सज्दे और सज्दे से उठने के लिए अल्लाहु अकबर कहना
यहां पर भी यह कहा जा रहा है कि सजदे में जाते हुए लम्बी सांस में अल्लाहू अकबर कहते हुए जाएं और उठते वक्त भी कहते हुए उठें।
सज्दे के लिए पहले दोनों घुटनों को साथ में जमीं पर रखना
सजदे में इस तरह जाएं सबसे पहले दोनों घुटनों को जमीन पर रखें फिर हांथ फिर नाक फिर पेशानी उठते हुए ऑपोजिट करें पहले पेशानी तब नाक फिर हांथ फिर घुटनों को उठाएं।
सज्दे में कम से कम तीन बार सुब्हान रब्बियल अला कहना
सज्दे में भी वही सुन्नत है कि कम से कम तीन बार सुब्हान रब्बियल अला कहना चाहिए यहां भी पांच या सात मरतबा कहेंगे तो अफजल यानी बेहतर होगा।
दोनों सज्दों के दरमियान मिस्ले तशह्हुद के बैठना
दोनों सज्दों के दरमियान कुछ पल के लिए बैठना चाहिए ऐसा न करें कि पहली सजदा से उठे और तुरंत अल्लाहू अकबर कहकर दुसरा सजदा भी कर लिए ऐसा न करें।
अगली रकात के लिए पंजों को घुटनों पर रख कर उठना
जब दोनों सज्दा मुकम्मल हो जाए तो अगली रकात के लिए अपने दोनों हाथों के पंजों को अपने घुटनो पर बल देकर खड़ा होवें यानी पंजों के बल उठे।
दुसरी रकात से फारिग हो कर इस तरह से बैठना
दुसरी रकात से फारिग हो कर कादाए अखिरा में इस तरह बैठें कि बायां पांव को बिछाए और दाहिने को खड़ा रखें और बैठ जाएं जबकि औरतों के लिए दोनों पांव को दाहिनी ओर निकाले और बाएं सुरीन पर बैठ जाएं।
दाहिना हांथ दायां और बायां हांथ बाईं रान पर रखना
यहां साफ यह समझे की जब आप बैठे तो अपने दाएं जांघ पर दाहिना हांथ रखें बिलकुल घुटने के करीब और बायां बाईं जांघ पर घुटने के क़रीब उंगलियां न ही ज्यादा फैली हो और नाही सिकुड़ी हुई हो।
शहादत पर इशारा करना
जब तशह्हुद यानी अत्तहियात पढ़ते हुए कलिमें ला पर पहुंचे तो दाहिना हांथ की शहादत उंगली खड़ा करें इस तरह की सब दाहिने हाथ की उंगली जुटाए और अंगूठे और बीच की उंगली से हल्की बांध लें और शहादत उंगली खड़ा करें।
तशह्हुद के बाद कादाए अखिरा में दुरूद शरीफ पढ़ना
यहां पर अक्सर दुरूदे इब्राहिम पढ़ी जाती है आप भी इसी दुरूद शरीफ़ को पढ़ें या फिर कोई दुरुद शरीफ़ न याद रहने पर पढ़ सकते हैं इसके बाद दुआ अरबी में पढ़े जैसे दुआ ए मसूरा गैर जबान में पढ़ना मकरुह है।
अस्सलामु अलैकुम पुरा कह कर सलाम फेरना
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह दो बार कहना पहली बार कहने पर दाहिने जानिब सर गर्दन सहित घुमाएं फिर बाएं तरफ और दोनो तरफ घुमाने पर रुखसार दिखाई दे इसके अलावा कोई लफ्ज़ न बोलें।
जोहर, मगरिब और ईशा की फर्ज के बाद मुख्तसर दुआ करके खड़े हो जाएं और फिर आगे की सुन्नत नमाज अदा करने लग जाएं अगर आप इसमें लेट करेंगे तो आपको सुन्नत का पूरा यानी मुकम्मल सवाब हासिल नहीं होगा।
आख़िरी बात
आप ने इस पैग़ाम में बहुत ही जरूरी इल्म को जाना हासिल किया हमने यहां पर बहुत ही साफ और साधारण तरीके से सभी बातों को समझाया बताया था जिसे आप आसानी से समझ जाएं यकीनन आप समझ भी गए होंगे आप इन सभी बातों को बहारे शरीयत के तीसरे हिस्से में पाएंगे।
अगर अभी भी आपके मन में नमाज की सुन्नत से मुताबिक या फिर यहां पर लिखी हुई कोई बात आपको समझने में परेशानी आ रही हो तो आप हमसे अपने सवाल को कॉमेंट करके ज़रूर पूछें हम आपके सभी सवालों का जवाब जल्द से जल्द इनायत करेंगे इंशाल्लाह।
अगर यह पैगाम आपको अच्छा लगा हो यानी इस पैग़ाम से कुछ भी अच्छी इल्म हासिल हुई हो तो बराए मेहरबानी जिन्हें ना मालुम हो उन्हें जरूर बताएं जिसे सब सही तरीक़े से नमाज अदा कर सके साथ ही अपने नेक दुआओं में हमें भी याद रखें शुक्रिया।
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